लखीमपुर खीरी, 5 जनवरी 2025: कृषि प्रधान देश के किसान एक बार फिर अपनी दुर्दशा को लेकर चर्चा में हैं। उत्तर प्रदेश के गोला गोकर्णनाथ क्षेत्र में स्थित बजाज हिंदुस्थान शुगर लिमिटेड के गन्ना यार्ड में सर्द रातों में किसानों को खुले आसमान के नीचे रात बिताने के लिए विवश किया जा रहा है। इस गंभीर स्थिति ने एक बार फिर भारतीय किसानों की कठिनाईयों और उनके संघर्ष को उजागर किया है, जो हर दिन अपनी फसल की उचित कीमत पाने के लिए कई कठिनाइयों से जूझ रहे हैं।
किसानों का संघर्ष: सर्दी और बेबसी के बीच जी रहे हैं किसान
गन्ना यार्ड में किसानों की स्थिति बहुत ही नाजुक है। सर्दी की रातों में वे केवल गन्ने की पत्तियों पर सोने के लिए मजबूर हो जाते हैं। ट्रैक्टर के नीचे जमीन पर बिछाई गई गन्ने की पत्तियाँ ही उनका बिस्तर बन जाती हैं, और अपनी बारी का इंतजार करते हुए वे पूरे रात कंबल लपेटे बैठे रहते हैं या फिर ट्रैक्टर की सीट पर लोटते रहते हैं।
किसान अशोक कुमार, जो सर्द रात में गन्ने की पत्तियों का बिछौना बनाकर लेटे हुए थे, ने बताया, “यहां किसी प्रकार की कोई सुविधा नहीं है। न तो कोई अलाव जलवाया जाता है और न ही ठहरने का कोई इंतजाम है। हम खुले आसमान के नीचे रात बिताने के लिए मजबूर हैं। हर नई सरकार से हमें उम्मीद रहती है कि कुछ अच्छा होगा, लेकिन उम्मीदें कभी पूरी नहीं होतीं।”
किसानों के लिए कोई सुरक्षा नहीं: जानवरों से खतरा, बाघ से जान का डर
किसानों की स्थिति को लेकर गंभीर समस्याएँ उठ रही हैं। राकेश कुमार जैसे किसान बताते हैं कि गन्ना यार्ड में फसल को छुट्टा घूम रहे जानवरों से खतरा है, और इसके अलावा बाघ जैसी जंगली जानवरों से भी जान का खतरा बना हुआ है। राकेश कहते हैं, “गन्ने की फसल को छुट्टा घूम रहे जानवर खराब करते हैं, और बाघ जैसे खतरनाक जानवरों का भी खतरा है। हमारे पास कोई सुरक्षा उपाय नहीं हैं, बस अपनी किस्मत पर छोड़ दिया जाता है।”
इसके अलावा, किसानों के लिए गन्ना यार्ड तक आने-जाने में भारी खर्च हो रहा है। एक ट्रॉली गन्ना लेकर चीनी मिल तक पहुँचने में 7000 रुपये तक खर्च हो जाते हैं, और फिर भी किसानों को उनका पिछला भुगतान प्राप्त नहीं हुआ है। “हमारे पैसे नहीं मिल रहे हैं, और हर बार हमें उम्मीद रहती है कि कुछ अच्छा होगा, लेकिन फिर से हमें वही पुरानी निराशा ही मिलती है,” राकेश कुमार ने अपनी समस्याएँ साझा की।
अलाव और ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं, चीनी मिल का दावा अलग ही कुछ और
सर्दी से राहत पाने के लिए किसानों ने कई जगहों पर खुद अलाव जलाए, लेकिन गन्ना यार्ड में कोई व्यवस्था नहीं दिखी। किसान अमृतपाल सिंह ने बताया, “पूरी गन्ना लाइन में कहीं भी अलाव जलता हुआ नहीं दिखा। सर्दी की रात काटना वाकई मुश्किल हो जाता है। उधारी और कर्ज लेकर हम अपनी दिन-प्रतिदिन की ज़िंदगी चला रहे हैं।”
चीनी मिल के वरिष्ठ गन्ना महाप्रबंधक पीएस चतुर्वेदी का दावा है कि यार्ड में आठ अलाव जलाए जा रहे हैं और किसानों के लिए शेड भी हैं। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है, क्योंकि किसानों का कहना है कि सिर्फ एक स्थान पर ही अलाव जलते हुए देखे गए, बाकी जगहें पूरी तरह से अंधेरी और ठंडी हैं।
किसानों के लिए भविष्य की कोई उम्मीद नहीं, सरकार से निराशा
किसानों की इस स्थिति को लेकर कई किसानों ने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए। अमरनाथ नाथ, एक और किसान, ने कहा, “हम दोपहर 2:30 बजे लक्ष्मण नगर से निकलकर यहां आते हैं, और रात के करीब 11 बजे हमारी बारी आती है। हमें उम्मीद रहती है कि नई सरकार हमें कुछ राहत देगी, लेकिन हमारी हालत में कोई बदलाव नहीं आ रहा है।”
किसानों की उम्मीदें हर नई सरकार से जुड़ी रहती हैं, लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लगती है। उनका मानना है कि सरकारें उन्हें केवल अपने वोट बैंक के रूप में देखती हैं, न कि उनके संघर्ष और कठिनाइयों का समाधान करने के रूप में।
क्या सरकार किसान के संघर्ष को समझेगी?
किसानों की यह स्थिति केवल लखीमपुर खीरी की नहीं, बल्कि देशभर के कई गन्ना उत्पादक क्षेत्रों की सच्चाई है। सरकारी नीतियाँ और उनकी अनुपलब्धता किसानों के जीवन को और कठिन बना रही हैं। अगर स्थिति ऐसी ही रही, तो किसानों का यह संघर्ष और भी लंबा और कठिन हो सकता है।
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किसानों के इस संघर्ष के बीच, सरकार और संबंधित विभागों के लिए यह वक्त है कि वे किसानों के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझें और उनकी कठिनाइयों का समाधान खोजें, ताकि उनकी जीवनशैली में सुधार हो सके और वे अपने श्रम का उचित फल पा सकें।
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